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कच्छी बोली

(निसाड़में क बार सॅरी –चॉक में निन्ढें सरतीयें ज्यूं ब टोलियूं थीअें नें जोम जुस नें भावसें साम सामा पड़कारा थीअें…छोकरेंके रांध-रांधमें सिखेजो मिले नें जाध प रै विञे अेडी़ ही रांध नारायण जोशी ‘कारायल ‘ जे ईंधल प्रकाशन म्यां आए).
                          जोड़कणां
    

  टोली- १
टोली- २
असीं सिखोंता   …………………………. कच्छी  बोली.
असीं  लिखोंता  …………………………. कच्छी  बोली.
असीं  बुजोंता  ………………………….. कच्छी  बोली.
मूंजी  बोली   …… ……………………. कच्छी  बोली.
असांजी बोली   …………………………. कच्छी  बोली.
पांजी  बोली    …………………………. कच्छी  बोली.
मिणींजी बोली  ………………………….. कच्छी  बोली.
जभर बरूकी   …………………………… कच्छी  बोली.
सूरातन डे     …………………………… कच्छी  बोली.
भक्तिरसजी    ……………………………. कच्छी  बोली.
टूंकी नें टच   ……………………………. कच्छी  बोली.
नोंय रसेंजी   …………………………….. कच्छी  बोली.
हिकडाई डेती  …………………………….. कच्छी  बोली.
कच्छजी मूडी ……………………………….कच्छी  बोली.
डेसजी संपत  …………………………….. कच्छी  बोली.
डेस –विडेसे   …………………………….. कच्छी  बोली.
मिठी लगे़ती  ……………………………… कच्छी  बोली.
असीं कुछोंता  …………………………….. कच्छी  बोली. 
              : नारायण जोसी “कारायल”

One Comment

  1. abdulgani sama says:

    पाजी कच्छी मिठड़ी बोली मे हिय बाल प्रर्वर्ती {राँध} भारी सोठी ख़ासी लगी, हेन राँध जे बनाईंधल असाजे बुजरँग कच्छी कवि, वडील, अने असांके कच्छीयत जी वाट वताईधल नारायण भाई जोशी के असांजा लख लख सलाम

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