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लिख, हाणें लिखवार, पण तूं भंध न कर !
खम कलम कर वार, तूं भंध न कर !
माडू नईयें गईयार , तूं भंध न कर !
कर कलम तईयार , तूं भंध न कर !
कर सचजो हूंकार , तूं भंध न कर !
खोटा न कर वीचार, तूं भंध न कर !
लेखक Author | चॉपडी जो नालो Title | विषय Book Subject |
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निपट निन्ढें बिजें वारा
जबर जॉराते थुड़ वारा …….
मींयड़ें के वारण वारा
पोंयूं रिढूं हित वेंत्यूं
माडूडा़ हित ठापर खणेंता …….
रांध भिरांठडी़ रमाय वारा
कीडि़यूं माकूडा़ हित वसेंता
पखीडा़ सांजी भेरा थै ने ……..
जीव मातर के थाधारे ने़
रतें नीलें टेटें वारा
ऊनीं ऊनीं पाड़ें वारा
खासा लग़ेंता वड़ डाडा
गो़ंयूं मैयूं वेसा खेंत्यूं
पिरभ पाणीजा हित वें ता
वला़ लग़ेंता वड़ डाडा
जर जिनावर हित ठेकेंता
किलबिल किलबिल रयाण करींता
वेसां डींयेंता वड़ डाडा
चिईं डिंयेंजी चमक धुनियांजी , भलें लग़ेती खासी,
भाकीं गा़ल ही साव खोटी, जेंणां पांके जलइ खपे.
सीरा-पूडी लडूं ने भजीया, सिभाजें रोज कीं माडूके ?
ई मिठी लग़ंधी रोज रोटी, जेंणां पांके जलइ खपे.
गीत-गजलूं लिखी करीनें धरध तुं ओछो कैजें,
अचींघी ‘सरमाड़’ हथ्रॉटी, जेंणां पांके जलइ खपे.
હી જીવન જીવી શકા નતો મુજી રીતે,
શબ્દ મેણે લેખી શકા નતો મુજી રીતે.
નિયમે જે કાગર તે ઇચ્છાજી શાહી કે,
આઉ વહાય પણ શકા નતો મુજી રીતે.
સમય થોભેલા નતો ડે કેતે પણ ક્ષણભર,
આઉ સફર કે રોકે શકા નતો મુજી રીતે.
આંજી યાદમે સાગરજે હી ખારે પાણી કે,
ચખે કડે પણ શકા નતો મુજી રીતે.
મૃગજળ જેળા શમણાં જીવન જે રણમે મેલ્યા,
રણ જો તારણ પણ ખણી શકા નતો મુજી રીતે.
“ધ્રુવ” હી ત મહેરબાની આય ચંધર જી,
નેકા ત ચમકી પણ શકા નતો મુજી રીતે.
: ધ્રુવ એલ. ભાનુશાલી– “ધ્રુવ“
ऊ ज आय व्रन्धावन
ऊ ज मथुरां ध्वारकां ,
मतलब त मा़डू प को’
ऊ ज अैं नईं पारका ;
ऊ ज आय पांके पांजा भनाईंधल कान ! ….
रुभरु मिलों पां रोज
कम वॅ क न वॅ,
रुबरु खिलों पां रोज
गम वॅ क न वॅ;
रुभरू अचींधो रुभरु मिलाईंधल कान ! ….
सिज़ के न चॉवाजे
जग़ के उजा़रो मं डॅ,
जोत के न चॉवाजे
जोत ! जग़मगारो मं डॅ!
पांके चेतायतो जोत प्रिगटाईंधल कान !
जिंध न ता छडीयें
जगजा ही हुल घडीभर,
कयांनूं ज़मार भने
जमनां जो घाट घडी़भर !
ही र्यो नकां रोम रोम रासूडा़ रचाईंधल कान !….
मा पेके अईं मान डयॉ, अईं आंजा आधार ;
अिनींजी आसीससेंज, अईं तरी थींधा पार. : २
मेहताजी के मान डॅ, भणतर में मन भेड़ ;
प्यारो थीजे प्रेम सें, रखॉ मिणीअसें मेड़. : ३
वडे वताई वाट तें, समजी हलजा सॅज़ ;
चॅ नारायण नीमसें, नित अुनींअ वट वॅज. : ४
सुखसें वॅलो रॅ सुमीं, वॅलो अुथीये वीर ;
बर बुद्धि नें धन वधे, सुखमें रॅ सरीर. : ५
गूरुके ईश्वर सम गणें, भणतर में मन भेड़ ;
विध्या सें वृध्घि थीये, विध्या जॅडो़ केर . : ६
विगर सवारथ वडेंजी, सेवा कर तूं सॅज़ ;
नारायण चॅ नीम सें, वधू अुनींअ वट वॅज़ . : ७
कर रक्षम प्रभु हेत सें , धिल-ज असांजो साफ;
भोल असीं करीयों कडें, से हरी कर तं माफ – २
श्री कच्छी लिपि लिखणसें , कच्छीअेंजो कल्याण ;
पोथी तें कारण लिखां, लिपिके डीजा मान – ३
તહેવારે જી ઉજવણી નિમિતે,અન્નકુટ ન ઘરાઈજા
દિન દુખયા ભુખ્યા જીવકે,પ્રેમથી જમાડિજા
મુકે ઘરાયેલ પ્રસાદ બાબત,પૈસા વચમે ન ખણજા
યથાશક્તિ ભેટ ઘરે તેંકે,સરખો પ્રસાદ ડિજા
આંજે સંતાને કે સાથે ખણીને,ઘર્મ જી વાટ તે વારીજા
જ્ઞાન બોઘ જો પાઠ,જીવનમે ઇમાનધારી થી પાળીજા
માનવદેહ મેલ્યો મું થકી,દિર્ઘાયુષી જીવી ઉજાળીજા
ધર્મજા ચાર પગથિયા ચડીને,જીવકે મોક્ષ જી વાટતે વારીજા.