हाल पुछधा
वाट में मिलधल,
धिल जी गाल
सुणधल कोक वें,
इनके रखो हींये.
*- वसंत मारू…चीआसर*
पांजी मातृभूमी कच्छ, मातृभासा कच्छी ने पांजी संस्कृति ही पांला करे अमुल्य अईं. अज कच्छ में ऊद्योगिक ने खेतीवाडी में विकास थई रयो आय. बारनूं अलग अलग भासा बोलधल माडु प कच्छमे अची ने रेला लगा अईं. हॅडे वखत मे पां पांजी भासा ने संस्कृति के संभार्यूं ही वधारे जरूरी थई व्यो आय. अमुक महत्व जा कार्य जे अज सुधी पूरा थई व्या हुणा खप्या वा ने जे अना बाकी अईं हेनमेजा जे मिणीयां वधारे महत्वजा अईं से नीचे लखांतो.
छगन (पंढजे बोस के ) – सर, काल थी आउ वेलो 7 वगे घरे हल्यो वेधो…..
बोस :- को..?
छगन :- आजी नोकरी थी मुजो घर नतो हले ,
रात जो नाईट में मूके रिकसा हलाईणी खपेती एटले…
बोस (भावुक थई ने ) – रीक्षा हलाई धे हलाई धे थकी रे ने भोख लगे त मु वटे अची ज भला , आउ पण रात जो पाव-भाजी जी लारी हलाईया तो …
सीम न लजे मुके,
हाणे थइ मोसीबत भारी..
फोन करे पोछयो अधा के,
अधा सीम कदा आय पांजी..
अधा वठोओ ओटे गामजे,
नोटरम जमइ होइ बोरी..
फोन सोणी अधा ओपळ्यो,
लख लख जीयु दने चार गारीयुं..
ओठ जेदो थे तोय सीम
न लधे पांजी..?
थकी हारी आयो आउ पाछो,
खेळ वगरजी सीम रइ सारी..
अधा अचींधो अदो कढधो,
करींधो मगज मारी बोरी…
ब माडुंएजो भतार खाइ,
नंधरुं कयुं आउ भारी…
केजी सीम केडा ढगा केजो अधा,
रात वइ सवार ओगइ सारी..!!
मुंभई में ऐसा गरमी पेती है , के मत पोछो गाल ।
अध कलाक मे त मों पकेले टमाटे जेडा भनता है ।
हणे खाली वरसाद का वाट मेडे नेरता है ।
कुछ नहीँ सोजता है , हेदा का माडु बोरा मोंजता है
तोय सवार के पोर मे मेणी को संभारता है …
सबका दिं खासा वने … 🙂
Have A Nice Day … 🙂
बाजु वारा जमना काकी पोछ्यों :- मासा के काॅ मारयाॅता.?
फुडरीमासी:- आयुर्वेदिक वारो डॉक्टर चें ने के ही धवा मासा के कोटे ने पिराइजा
जो होनजी बायडी कच्छ जी होइ त ?
केडा वनॉता
कें साथे वनॉता
कॉ वनॉता
पाछा कॅर अचिंधा
हॅडो परया वनेजी कोर जरूर आय
अइं न सोधिंधा त न हलधो
अइं पोरथ्वी जो भार खयांना
रोगो रोल्यो खपॅतो आंके
छेल्ले कटांडजी ने कोलम्बस चई डने वें ….
नाय वनणु केतेय
माफ़ कर मुंके
आउ धोकान तेज वइ रयांतो 🙂