कचरो बरी वेंधो कुडाईजो.
सचाई अची वेंधी सामें,
नें काठ निकरी वेंधो कुपाईजो.
“अगम”
खें घरें त ओगार
ठेसनेंते वारीएं.
मनडो
——
सउं हले ज सिज उगाय,
ऊंधो हले त अंधेरी;
“तेज” चें एडो मनडो
छाल थीए म केंसे वेरी.
तंतर
—-
अज उड्घाटन में कतर,
स्वागत में आंटी;
“तेज” तंतर इं ज हलेतो,
कित फिटक कित डांटी
(कविजी चोपडी
“तेज-वाणी” मिंजा)
नवले सोरॅं सणगारें महेकंधे आवई वसंतराणी
फुलडेंजा जांजर छमछमंधे आवई वसंतराणी
कोयलडीयूं कुणकारीएं, मोरलां आवकारीएं
पखीयेंजा स्वागत वधाइंधे आवई वसंतराणी
कवली कुंपर लचॅंत्यूं नें नचॅं लागणी डारें
खिसकोलीएं भॅरी रमंधे आवई वसंतराणी
नंयारङ, नंयाउमंग नें नंयेतरङे सोभेती धरा
प्रकृतिजी जुआणाई खीलाइंधे आवई वसंतराणी
केसूडे जा कामण सिज઼ सोन छाबें तां हींचें
वासंती वावरा चूमींधे आवई वसंतराणी
‘मन’ पिरीं मिलणें हेज तां हींयें हिलोरेंतो
कसधार बखुं भरींधे आवई वसंतराणी
मनीषा अजय वीरा ‘मन’🌹
पांजी मातृभूमी कच्छ, मातृभासा कच्छी ने पांजी संस्कृति ही पांला करे अमुल्य अईं. अज कच्छ में ऊद्योगिक ने खेतीवाडी में विकास थई रयो आय. बारनूं अलग अलग भासा बोलधल माडु प कच्छमे अची ने रेला लगा अईं. हॅडे वखत मे पां पांजी भासा ने संस्कृति के संभार्यूं ही वधारे जरूरी थई व्यो आय. अमुक महत्व जा कार्य जे अज सुधी पूरा थई व्या हुणा खप्या वा ने जे अना बाकी अईं हेनमेजा जे मिणीयां वधारे महत्वजा अईं से नीचे लखांतो.
निपट निन्ढें बिजें वारा
जबर जॉराते थुड़ वारा …….
मींयड़ें के वारण वारा
पोंयूं रिढूं हित वेंत्यूं
माडूडा़ हित ठापर खणेंता …….
रांध भिरांठडी़ रमाय वारा
कीडि़यूं माकूडा़ हित वसेंता
पखीडा़ सांजी भेरा थै ने ……..
जीव मातर के थाधारे ने़
रतें नीलें टेटें वारा
ऊनीं ऊनीं पाड़ें वारा
खासा लग़ेंता वड़ डाडा
गो़ंयूं मैयूं वेसा खेंत्यूं
पिरभ पाणीजा हित वें ता
वला़ लग़ेंता वड़ डाडा
जर जिनावर हित ठेकेंता
किलबिल किलबिल रयाण करींता
वेसां डींयेंता वड़ डाडा
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1. Which Kutchi writer has written the famous Kutchi patriotic song ‘Munjhi Matrubhoomi Ke Naman’
a. Narayan Joshi
b. Mahatma Niranjan
c. Madhav Joshi
d. Kavi Tej
2. Which of the below birds are found in Kutch
a. Chestnut bellied Sandgrouse
b. Steppe Eagle
c. Eurasian Marsh Harrier
d. Eurasian Spoonbill
3.Which month is the Hajipir Fair in Kutch celebrated
a. September
b. August
c. April
d. January
सिज ने चंधर , तारा मंढल !
वसंधल मेघ मलार चितरीयां !
कुकड़ कागड़ो, हंस कबुतर,
तितर कलायल मोर चितरीयां !
हाथी घोड़ो , उठ गांय ने ,
रिढ़ ने बकरी , मे चितरीयां !
हिकड़े निनढड़े हथ जे विचमें ,
किस्मतजी आऊं , रेखा चितरीयां !
: माधव जोशी “अश्क”