लिखी सगां तो गुर्जरी , हिन्दी पण निर्वाण !
कच्छी ओकलॅ आतमा , वरसे परसे प्राण ! वरसे परसे प्राण !
कच्छी ओकलॅ आतमा , वरसे परसे प्राण ! वरसे परसे प्राण !
: कवि लालजी नानजी जोसी
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